साल 2011 में डेल्ही बेली जैसी सफल फिल्म की कहानी लिखने वाले अक्षत वर्मा इस हफ्ते डायरेक्टर के रूप में अपनी पहली फिल्म कालाकांडी लेकर आए हैं। इसे भी उन्होंने ही लिखा है। जाहिर है, कालाकांडी से भी दर्शक डेल्ही-बेली वाले स्तर की उम्मीदें लगाएंगे। पर इस बार मामला उतना जमा नहीं। इसे बुरी फिल्म तो नहीं कहा जा सकता, पर इसे यादगार फिल्मों की श्रेणी में रखना भी मुश्किल है।
फिल्म में मुंबई के कुछ किरदार हैं जिनकी कहानियां एक रात के घटनाक्रमों के दौरान आपस में उलझ जाती हैं। रिलीन (सैफ अली खान) को एक दिन पता लगता है कि उसे पेट का कैंसर है और वह बस चंद महीनों का मेहमान है। उसे यह सोचकर कोफ्त होती है कि ऐसे कितने ही काम हैं जो वह करना चाहता है पर अब तक नहीं कर पाया। वह तय करता है कि एक रात वह खुद को हर वह काम करने की इजाजत देगा, जो अब तक नहीं कर पाया है, मसलन, ड्रग्स, शराब, सिगरेट, किसी लड़की के करीब जाना आदि। उधर रिलान के दोस्त अंगद (अक्षय ओबेरॉय) की उसकी बहन नेहा (अमायरा दस्तूर) के साथ शादी की तैयारियां चल रही हैं, पर वह शादी को लेकर अब तक ऊहापोह की स्थिति में है। फिल्म में अभिनेत्री शोभिता धूलिपाला भी हैं जो अपने बॉयफ्रेंड कुनाल रॉयकपूर के साथ रहती हैं और पीएचडी करने के लिए विदेश जाने वाली हैं।
एयरपोर्ट के लिए निकलने से पहले दोनों एक रेव पार्टी में जाते हैं जहां उनकी दोस्त आयशा (शहनाज ट्रेजरीवाला) और उसका बॉयफ्रेंड भी मौजूद हैं। इस पार्टी में ड्रग्स की जांच को लेकर पुलिस की रेड पड़ती है। ये चारों किसी तरह जुगत निकाल कर पुलिस से बचकर भाग निकलते हैं। इस बीच एक मोटरसाइकिल से आ रहे दो लोग उनकी कार की चपेट में आकर मारे जाते हैं। शोभिता खुद को गुनाहगार समझती हैं क्योंकि उस वक्त गाड़ी वह चला रही थीं। उधर एक गैंगस्टर के लिए काम करने वाले दीपक डोबरियाल और विजय राज अपने बॉस का पैसा मार कर उसे धोखा देने का प्लान बना रहे हैं। एक रात इन चारों किरदारों की जिंदगियां आपस में मिल जाती हैं और ये सभी किरदार एक-दूसरे की जिंदगी में शिद्दत से प्रभावित डालते हैं। आप कहेंगे कि लगभग ऐसा ही तो डेल्ही-बेली में भी हुआ था, तो हम आपको बता दें कि इस फिल्म में ऐसी कई बातें हैं जो आपको डेल्ही-बेली की याद दिलाएंगी। गालियां भी उनमें से एक हैं। डेल्ही-बेली जितनी नहीं, पर फिर भी पर्याप्त मात्रा में गालियां हैं, विशेष रूप से विजय राज और दीपक डोबरियाल के साथ फिल्माए गए दृश्यों में। भागादौड़ी का खेल इस फिल्म में भी है, हालांकि वह विलेन से बचने के लिए नहीं है। और डेल्ही-बेली वाले कई कलाकार तो हैं ही- विजय राज, शहनाज ट्रेजरीवाला और कुनाल रॉय कपूर।
फिल्म की सिनेमैटोग्राफी काफी प्रभावी है और झमाझम बारिश में तेजी से घटते घटनाक्रमों का फिल्मांकन बखूबी किया गया है। लाइटिंग भी आंखों को सुकून देने वाली है। तकनीकी दृष्टि से फिल्म अच्छी बनी है। फिल्म के कई किरदार बेहद दिलचस्प हैं, खास तौर पर सैफ, शोभिता धूलिपाला, विजय राज और दीपक डोबरियाल। विजय और दीपक की जोड़ी तो सभी कलाकारों पर भारी पड़ती नजर आती है।
सभी कलाकारों का अभिनय अच्छा है, हालांकि कुनाल रॉय कपूर इस बार जरा कमजोर नजर आए। इन सभी किरदारों का पागलपन अगर कुछ डिग्री और बढ़ाया जा सकता, तो कहानी की इस भूल-भुलैया में और भी ज्यादा मजा आता। फिल्म का अंत काफी दिलचस्प है। इसका संगीत सामान्य ही है।
फिल्म के ज्यादातर संवाद अंग्रेजी में हैं, जैसा कि मुंबई के उच्च वर्गीय किरदारों से अपेक्षा की जा सकती है। आम दर्शकों को इससे कुछ असुविधा हो सकती है क्योंकि इन संवादों में सबटाइटल भी नहीं दिए गए हैं। फिलम का रंग-ढंग और सारी पैकेजिंग ऐसी है कि जिससे उच्च वर्ग के दर्शक जुड़ाव महसूस कर सकते हैं, पर मध्यमवर्गीय दर्शक इससे जरा कम जुड़ पाते हैं।