देश की जनता पत्रकारो की भीड़ मे ढूढ रही है पत्रकारो को


ख़ालिद रहमान

लोकतंत्र के चाौथे स्तम्भ पत्रकारिता के प्रहरी पत्रकार समाज का आईना कहे जाते है भले ही आज वो महान पत्रकार जीवित न हो जिन्होने देश को अग्रेज़ो से आज़ाद कराने के लिए राष्ट्र पिता महात्मा गांधी जी के द्वारा चलाए गए जन आन्दोलन को अपनी निष्पक्ष सच्ची पत्रकारिता के माध्यम से गति देकर देश की आज़ादी मे अपनी भागीदारी निभाई थी लेकिन देश और समाज के प्रति पत्रकारिता के माध्यम से अपनी ज़िम्मेदारी का निर्वाहन करने वाले उन तमाम महान पत्रकारो की कलम की वीर गाथाए आज भी पत्रकारिता के लिए समर्पित वास्तविक पत्रकारो मे उर्जा भर्ती है। गोदी मीडिया के इस दौर में सच्चाई को हिम्मत और जज़्बे के साथ निडर होकर देश की जनता के सामने लाने वाले पत्रकार गोदी मीडिया की चकाचैध मे आज भी विलुप्त नही हुए है और तमाम पत्रकार आज भी बिना रूके बिना थके बिना डरे बिना किसी के दबाव मे आए अपनी ज़िम्मेदारियो को निभा रहे है । देश और समाज के प्रति अपनी ज़िम्मेदारियो का निर्वाहन करने वाले तमाम ऐसे पत्रकार है जिन्हे किसी न किसी रूप मे सच लिखने सच दिखाने और सच बोलने के लिए मुकदमो का दंश झेल कर जेल की यात्राए करनी पड़ रही है लेकिन देश के 135 करोड़ लोगो तक किसी न किसी माध्यम से सच को सामने लाने के लिए आज भी तमाम पत्रकार अपनी कलम की धार को कम नही होने दे रहे है। बड़े दुख की बात है कि आज देश के करोड़ो लोग सोशल मीडिया पर पत्रकारो की भीड़ के बीच उन पत्रकारो की तलाश करते है जो आज भी सच लिखने के लिए पहचाने जाते है ये तो अफसोस की बात ही कही जाएगी कि लोग अब पत्रकारो की भीड़ मे पत्रकार की तलाश कर रहे है। कहने को तो हर पत्रकार अपने आपको निष्पक्ष निर्भीक पत्रकार कहने में अपनी सारी उर्जा को झोंक देता है लेकिन देश की आम जनता समझदार है जनता ने ही पत्रकारो एक बड़े तबके को गोदी मीडिया का नाम देकर पत्रकारिता की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े करना शुरू कर दिए है। तमाम लोगो ने मौजूदा समय मे अनगिनत टीवी न्यूज़ चैनलो को ये कहते हुए देखना ही छोड़ दिया है कि देश के तमाम न्यूज़ चैनल देश की जनता को वास्तविक मुददो से भटका रहे है तमाम ऐसे अखबार भी है जिनको जनता ने नज़र अन्दाज़ करना शुरू कर दिया है जिन पर गोदी मीडिया होने का आरोप जनता लगाती है। मौजूदा समय सोशल मीडिया का समय है और आज करोड़ो लोग सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेट फार्म जैसे व्हाटसएप, इन्स्टाग्राम ट्वीटर , फेसबुक आदि को खबरो के आदान प्रदान के लिए माध्यम बनाए हुए है। देश की जनता अब सोशल मीडिया पर भी सवाल उठाने लगी है लेकिन जनता करे तो क्या करे देश की जनता के आरोेपो के तहत गोदी मीडिया के नाम से बदनाम तमाम मीडिया घराने है जिन पर कारोबारी मीडिया होने का तमग़ा लग गया है। ये तो हो गई राष्ट्र स्तर पर पत्रकारिता और पत्रकारो की बात लेकिन निचले स्तर मौजूदा समय मे तमाम ऐसे स्थानीय पत्रकार है जो छोटी गोदी मीडिया के नाम से पहचाने जा रहे है। ये छोटी और बड़ी गोदी किसकी है और छोटी बड़ी गोदियों मे बैठ कर जनता के विश्वास को छलने वाले ये गोदी मीडिया के ये पत्रकार कौन है इसे बताने की ज़रूरत नही है। राष्ट्रीय स्तर और स्थानीय स्तर की गोदी मीडिया से लोग भलिभांति परिचित है।

पत्रकारो मे सेलफी और फोटो कम्पटीशन का दौर शुरू

वैसे तो पत्रकार को सिर्फ पत्रकार कहना चाहिए लेकिन दुर्भाग्य से आज के समय मे वास्तविक पत्रकार उन्ही को कहा जाता है जिन्हे सरकारी सुविधाओ के साथ सरकार द्वारा राज्य मुख्यालय और ज़िला स्तर की मान्यता से नवाज़ा गया है हालाकि मान्यता प्राप्त पत्रकारो की सख्ंयां कुल पत्रकारो की संख्या के मुकाबले मुटठी भर ही मानी जाती है लेकिन पत्रकारो की बड़ी भीड़ मे छोटी संख्या वाले मान्यता प्राप्त पत्रकार कुछ हद तक सरकारी लाभ उठाने का सौभाग्य प्राप्त कर रहे है । ये कहते हुए भी बड़ा दुख हो रहा है कि कम संख्या वाले मान्यता प्राप्त पत्रकारो मे भी कुछ ऐसे पत्रकारो की पहचान सोशल मीडिया के सहारे उजागर हो रही है जो देश प्रदेश गली मोहल्लो के ज्वलन्त मुददो से मुंह मोड़ कर सिर्फ अपने फोटो और शानदार पार्टियो मे बनाए गए वीडियो सोशल मीडिया पर अपलोड कर आने वाले कमेन्ट और लाईक की संख्या ब़ढ़ाने में अपनी शान समझ रहे है। अलग अलग पत्रकारो द्वारा सोशल मीडिया पर ग्रुपो के साथ अपलोड की जाने वाली फोटों वीडियो में एक दूसरे से कमेन्ट और लाईक का कम्पटीशन भी चलता है। सरकारी मान्यता के कार्ड से लैस ये भोले भाले पत्रकार अब प्रचार प्रसार का सशक्त माध्यम सोशल मीडिया के माध्यम से खुद का प्रचार प्रसार कर शायद पत्रकार से उपर उठ कर माननीय बनने की लाईन में लग कर अपनी किसमत खुलने का इन्तिज़ार कर रहे है। हालाकि सोशल मीडिया पर अपनी अपने दोस्तो के साथ फोटो वीडियो अपलोड करना कोई अपराध नही है लेकिन पत्रकार अगर पत्रकारिता को नज़र अन्दाज़ कर सिर्फ अपने प्रचार प्रसार पर ही अपना ध्यान केन्द्रित कर देगा तो ये अफसोस का विषय ज़रूर है। अपना फोटो सोशल मीडिया के माध्यम से लोगो तक पहुॅचा कर एक दूसरे के टच मे रहना अच्छी बात है लेकिन देश की करोड़ो जनता को पत्रकार से आस होती है कि उनकी समस्याए पत्रकार जी सरकार तक समाचार के माध्यम से पहुॅचाए। सरकार द्वारा मान्यता देने का मक़सद भी यही होता है कि सरकार की योजनाओ को जनता तक पहुॅचा कर पत्रकार जनता के मददगार बने लेकिन अफसोस कुछ पत्रकार अपना प्रचार करने को ही पत्रकारिता मान बैठे है।

फर्ज़ी पत्रकारो के पकड़े जाने पर लगता है पत्रकारो पर दाग

गोदी मीडिया के इस दौर मे वास्तविक पत्रकारो को पत्रकारिता की विश्वसनीयता कायम रखने के लिए पहले से दो गुनी मेहनत करनी पड़ रही है । एक मेहनत गोदी मीडिया से जुड़े पत्रकारो की भीड़ मे खबर के अन्दर की सच्चाई को ढूढने की मेहनत फिर सच्चाई को ढूढ कर छापने के बाद उस सच्चाई पर गोदी मीडिया के द्वारा उठने वाले सवालो के जवाब देने की मेहनत। बड़े दुर्भाग्य का विषय ये है कि मौजूदा समय मे यदि कोई पत्रकार किसी अधिकारी की बड़ी गलती को समाचार के माध्यम से उजागर करता है तो गलती करने वाले की हिमायत मे ही पत्रकारो का एक तबका ढाल बन कर खड़ा होकर गलती लिखने वाले पत्रकार मे ही गलतियां ढूढ कर गलती करने वाले अपने चहीते का बचाव करने लग में जाता है । गलती करने वाले की गलती को अगर कोई आम आदमी छुपाने की कोशिश करे तो कोई कुछ नही कहेगा लेकिन जब सच्चाई उजागर करने वाले पत्रकार ही गलती करने वाले के पक्ष मे पक्ष मे खड़े हो जाए तो फिर विश्वसनीयता पर सवाल उठना लाज़िम है। । जब कभी छोटे स्तर की गोदी मीडिया से जुड़ा कोई भी तथाकथित पत्रकार गलत कृत्यो मे लिप्त पाए जाने पर गिरफ्तार किया जाता है तब सम्पूर्ण पत्रकारिता पर बेईमान वसूली करने वाली मीडिया कह कर मीडिया को कटघरे मे लाकर खड़ा कर दिया जाता है हालाकि अपराधिक गतिविधियो मे लिप्त पाए जाने पर पकड़े जाने वाले तथाकथित पत्रकारो की संख्या बहोत कम है लेकिन पत्रकारिता जैसे पवित्र पेशे मे प्रवेश कर पत्रकारिता की आड़ मे गलत कार्य करने वाले इन मुठठी भर कथित पत्रकारो का बहिष्कार करना वास्तविक पत्रकारो के लिए अब ज़रूरी हो गया है तभी मीडिया की विश्वसनीयता की सुरक्षा कर पाना सम्भव होगा।

कुछ भोले भाले पत्रकार बजा रहे है एक हाथ से ताली

ये कहावत है कि ताली एक हाथ से नही बज सकती लेकिन इस कहावत को हमारे कुछ पत्रकार भाई गलत साबित करते हुए एक हाथ से ताली बजा रहे है। हमे ये याद नही है कि किसी पत्रकार का जन्म दिन हो और उसके जन्म दिन की खुशी में किसी पुलिस या किसी प्रशासनिक अधिकारी ने उस पत्रकार की फोटो को खुद अपनी वाल पर डाल कर उसे जन्म दिन की बधाई दी हो लेकिन सोशल मीडिया को अगर खंगाला जाए तो फोटुओ के साथ ऐसे तमाम पुलिस के कर्मचारियो और अधिकारियो के लिए पत्रकारो द्वारा लिखे गए शुभ कामना संदेश मिल जाएगे जिनकी डिटेल मे जाने पर ये भी पता चल जाएगा कि जिस पत्रकार ने प्रेम भाव से अपने चहीते पुलिस अधिकारी या कर्मचारी के जन्म दिन की खुशी मे उनकी फोटो के साथ शुभकामना संदेश लिखा है उस कर्मचारी या अधिकारी के द्वारा धन्यवाद लिखना तो दूर उस मैसेज को लाईक तक नही किया जाता है। पत्रकार द्वारा लिखे गए शुभकामना संदेश पर सैकड़ो पत्रकार बधाई संदेशो की लाईन लगा देते है लेकिन उस संदेश पर उनका रिपलाई ढूढे नही मिलता है जिनका जन्म दिन भोले भाले पत्रकार उनसे पूछे बगैर ही सोशल मीडिया पर मनाते है। भोले भाले पत्रकारो की एक तरफा मोहब्बत को हाथ से ताली बजाना नही कहा जाएगा तो और क्या कहा जाएगा।

लोक भवन तक पहुॅच होने का सोशल मीडिया पर होता है प्रचार

लोक भवन, विधान भवन, राज भवन, सचिवालय भवन अति महत्वपूर्ण और सुरक्षा की दृष्टि से संवेदनशील माने जाते है । इन महत्वपूर्ण भवनो मे प्रवेश के लिए किसी आम आदमी को कतई इजाज़त नही है इन भवनो मे प्रवेश के लिए कई तरह की जाॅच के बाद पास जारी होता है । इन भवनो में प्रवेश के लिए पास उन्ही लोगो को जारी किया जाता है जिनका जाना ज़रूरी हो लेकिन सचिवालय पास धारक कुछ पत्रकार ऐसे है जिन्हे पास तो समाचार संकलन के लिए जारी किए गए है लेकिन यहंा ये पत्रकार पास रूपी तीर से एक साथ कई निशाने साध रहे है। पत्रकार विधान भवन के अन्दर निजी कार्यक्रम आयोजित कर कार्यक्रम की दर्जनो फोटो सोशल मीडिया पर अपलोड कर सचिवालय की चकाचैधे लोगो को दिखाते है और ये साबित करने का प्रयास करते है कि देखो हमारी पहुॅच उस भवन केे अन्दर तक है जहां जनता द्वारा चुने गए हमारे माननीय गण बैठते है। कुछ पत्रकारो द्वारा सोशल मीडिया पर अपलोड की जाने वाले अन्दर की तसवीरो से पहुॅच वाले इन पत्रकारो के रूतबे मे इज़ाफा होता है लेकिन जहंा आम आदमी को जाने की इजाज़त नही और कड़ी सुरक्षा वाले स्थान की फोटो सोशल मीडिया पर जारी होने से सुरक्षा से सम्बन्धित क्षति होने का भी अन्देश बढ़ सकता है।

अफसोस कुछ पत्रकार करने लगे है थानो पर लज़ीज़ खाने की फरमाईश

पत्रकारिता मे ऐसे दिन भी देखने को मिलेगे ये शायद किसी ने कभी सोंचा भी नही होगा कि थानो पर पुलिस द्वारा किए जाने वाले गुडवर्क के खुलासे के लिए प्रेस वार्ता आयोजित की जाए और वहंा समाचार संकलन के लिए पधारने वाले कुछ पत्रकार खबर के अन्दर की सच्चाई जानने के लिए सवाल नही बल्कि गुडवर्क लिखने के लिए पुलिस के अधिकारी से अच्छा खाना मंगाने की फरमाईश करेगे। पत्रकार वार्ता में कुछ पत्रकार सवाल नही पूछते है बल्कि खाने के होटलो के नाम का सुझाव देते है कि इस होटल पर खाना बढ़िया मिलता है और आज के गुडवर्क पर इस होटल का खाना खिलाईए। गुडवर्क की छपास की आस में अधिकारी इन्ही पत्रकारो को वरिष्ठ पत्रकार मान कर उनकी फरमाईश पूरी करते है जो प्रेस वार्ता के दौरान पुलिस को कटघरे मे खड़े करने वाले सवाल पूछने के बजाए पुलिस की वाहवाही में शोर मचाते है।

जिन पर है अपराध उजागर करने की ज़िम्मेदारी वो खुद लिप्त हो कर उठा रहे है फायदा

जुआ और सटटा ऐसी सामाजिक बुराई है जो समाज की आर्थिक जड़ो को खोखला कर रही है । समाज को खेाला करने वाली इस बुराई को अगर पुलिस नज़र अन्दाज़ कर रही है तो पत्रकार की ये ज़िम्मेदारी बनती है कि सामाजिक बुराई वाले इस छोटे कहे जाने वाले अपराध को समाचार के माध्यम से उजागर करे लेकिन सूत्रो ने जो खबर दी है वो न सिर्फ चैकंाने वाली है बल्कि पत्रकारिता जैसे पवित्र पेशे को शर्मसार करने वाली है। सूत्र बताते है कि ठाकुरगंज, सआदतगंज, चैक, बाज़ार खाला, नाका, चिन्हट , हसनगंज विभूतिखण्ड, अमीनाबाद , कैसरबाग आदि कई अन्य ऐसे थाना क्षेत्र है जहंा छोटे बड़े सटोरी सटटे का कारोबार बढ़े और छोटे पैमाने पर कर रहे है और पुलिस खामोशी अख्तियार किए है। सूत्रो के अनुसार इन क्षेत्रो मे रहने वाले कुछ तथाकथित पत्रकार सटटे के इन कारोबारियो के शरण दाता बन कर सटटे के कारोबार मे होने वाली कमाई मे बराबर के हिस्सेदार है। सूत्रो से मिली जानकारी के अनुसार सटटे के अवैध कारोबार मे लिप्त पत्रकारो की कुछ पुलिस कर्मियो से भी सांठगाठ है । सटोरियों के मददगार ये ऐसे तथाकथित पत्रकार है जो पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियो के साथ खिचवाई गई अपनी फोटो को छोटे पुलिस कर्मियो को दिखा कर उन पर अपना रूतबा बनाते है और इन्ही फोटुओ के ज़रिए आम लोगो से अच्छी खासी कमाई उनका काम कराने का भरोसा दिला कर रहे है।

पत्रकारिता के साथ दूसरा व्यवसाय करना क्या अपराध है?

कुछ पत्रकारो को ये कहते हुए अक्सर सुना जाता है कि टैम्पो वाला , पान वाला , परचून की दुकान वाला, कपड़े की दुकान वाले जब पत्रकार बन जाएगे तो पत्रकारिता तो नष्ट हो ही जाएगी इस पर हमारा सोंचना है कि पत्रकारिता सच दिखाने सच लिखने और सच बोलने का नाम है यदि कोई ई रिक्शा चालक वैधानिक तरीके से देश और समाज के सामने सोशल मीडिया, समाचार पत्र ,न्यूज़ पोर्टल न्यूज़ चैनल के माध्यम सच लाता है तो इसमे गलत क्या है । क्यूकि ये ई रिक्शा चालक अगर अपने परिवार के भरण पोषण के लिए इमानदारी से मेहनत कर रहा है और देश और समाज के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी निभाने के लिए पत्रकारिता कर रहा है तो क्या वो ई रिक्शा चालक अपराध कर रहा है। पत्रकारिता ऐसा माध्यम है जिसके ज़रिए दबी छुपी सच्चाई को समाचार के माध्यम से देश की जनता के सामने लाया जा सकता है आर अगर देश का कोई नागरिक कोई वैध व्यवसाय करने के साथ पत्रकारिता की अज़मत को भी बढ़ा रहा है तो इसमे किसी कोई कोई परेशानी नही होनी चाहिए बल्कि उसका मनोबल बढ़ाना चाहिए।

पत्रकारो के माध्यम से कुछ तथाकथित समाज सेवी कर रहे है अपनी ब्रान्डिंग

आज के दौर मे देश अनेक समस्याओ से जूझ रहा है लेकिन देश और समाज के प्रति समाचारो और लेख के माध्यम से अपनी ज़िममेदारी का निर्वाहन करने वाले कुछ ऐसे पत्रकार है जो कुछ ऐसे बड़े तथाकथित समाज सेवियों के द्वारा बुने गए चकाचैंध वाले भ्रम जाल मे फंस कर उनकी ब्रान्डिग कर रहे है जिनका न तो कोई वास्तविक समाज सेवा से सरोकार है और न ही पत्रकारिता से दूर दूर तक इनका कोई सरोकार है। पुराने लखनऊ मे बीते करीब आधा दशक से कुछ ऐसे ही तथाकथित समाज सेवी कुछ भोले भाले वरिष्ठ पत्रकारो को भ्रम जाल मे फंसा कर उनके साथ अपनी फोटुए खिचवा कर अपने आपको बड़ा समाज सेवी साबित करने की होड़ मे लगे हुए है। सूत्र बताते है कि पत्रकारो के द्वारा अपनी मार्केटिग करने की होड़ मे लगे ये वो तथाकथित समाज सेवी है जिनकी समाज सेवा मात्र सोशल मीडिया तक ही सीमित है। सूत्रो के अनुसार ये ऐसे तथाकथित समाज सेवी है जिनका क्षेत्र मे हो रहे कई कई अवैध कामो मे संलिप्ता है और सड़क पर ठेला खुमचा लगा कर अपने परिवार का भरण पोषण करने वाले गरीबो तक से ये तथाकथित समाज सेवी सरकारी सड़क के किराए की वसूली अवैध रूप से करते है। सूत्रो के अनुसार लखनऊ पश्चिम क्षेत्र के थाने मे पूर्व मे दर्ज हुए 307 के मुकदमे मे आरोपी रहा एक तथाकथित समाज सेवी इन दिनो सोशल मीडिया के माध्यम से अपने आपको शहर का सबसे बड़ा समाज सेवी साबित करने के लिए पूरी ताकत झोंके हुए है। सूत्रो के अनुसार अपनी ब्रान्डिग मे लगा ये तथाकथित समाज लज़ीज़ पकवानो की दावत मे हज़ारो रूपए खर्च कर सोशल मीडिया पर खूब वाहवाही लूट हा है। सूत्रो के अनुसार इस तथाकथित समाज सेवी की पारिवारिक प्रष्ठ भूमि को अगर खंगाला जाए तो पुलिस के नाम का सहारा लेकर इनके कई पूर्वजो ने क्षेत्र के तमाम गरीबो का दोहन किया है। सूत्रो के अनुसार पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियो को गुमराह करने वाले इस तरह के कई तथाकथित समाज सेवी शहर के कई अन्य हिससो मे भी सक्रीय है। ऐसे तथाकथित समाज सेवियों की बनावटी चकाचैंध मे वास्तविक समाज सेवियो की समाज सेवा की चर्चा कम ही होती है।

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