दंगा या हमला ? शान्ती की अपील उन पीड़ितो से जिन्होने हमले का दंश झेला


मोहम्मद शमशुददीन
अमेरिकी राष्ट्रापति डोनाल्ड ट्रम्प के भारत दौरे के दौरान उत्तर पूर्वी दिल्ली मे तंाडव को हमला कहे या फिर दो सम्प्रदाय के बीच दंगा ये समझने वाली बात है क्यूकि इस खूनी तांडव मे अब तक 30 लोगो की जाने चली गई 2 सौ से ज़्यादा गम्भीर रूप से घायल अस्पतालो मे भर्ती है सैकड़ो करोड़ की सम्पत्ति जल कर स्वाहा हो गई मरने वालो मे दिल्ली पुलिस का एक कास्टेबिल और आईबी का एक जवान भी शामिल है। तीन दिनों तक लगातार चले इस खूनी तांडव को हिन्दू मुस्लिम दंगे का नाम देकर लोगो से शान्ती कायम रखने की अपीले की जा रही है यहंा तक कि राष्टीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल भी उन बस्तियो मे पहुॅच कर उन लोगो से शान्ती की अपील करते देखे गए जिन लोगो का इस खूनी तांडव मे सब कुछ तबाह हो गया लेकिन यहंा गौर करने वाली बात ये है कि उत्तर पूर्वी दिल्ली के जो इलाके इस खूनी तांडव की ज़द मे आकर तबाह बरबााद हुए उन इलाके मे रहने वाले हिन्दु मुसलमानो ने किसी भी हमलावर की पहचान नही बताई पीड़ित यही कहते हुए नज़र आए कि हमला करने वाले स्थाानीय नही थे यहंा सवाल ये उठता है कि जब खूनी तांडव करने वाले हमलावर अज्ञात है तो ये कैसे कहा जा सकता है कि ये हमला नही बल्कि हिन्दू मुस्लिम दंगा है। ऐसे मे उन पीड़ितो से शान्ती की अपीले की जा रही है जिनका सब कुछ तबाह हुआ और यहंा ये भी देखने को मिला हिन्दुओ ने मुसलमानो की रक्षा की और मुसलमानो ने हिन्दुओ की रक्षा की । जिन लोगो से शान्ती की अपीले की जा रही है उनसे शान्ती के साथ साथ सब्र करने की अपील भी की जानी चाहिए क्यूकिं इनही लोगो ने अपना सब कुछ खोया है। ये हमला उसी तरह का हमला है जिसमे हमलावरो ने हमला कर हिन्दु मुस्लिमो के बीच नफरत की न सिर्फ दीवारे खंीचते हुए कत्ले आम किया बल्कि इस हमले मे कुछ हमलावरो द्वारा ऐसे वीडियो भी बना कर सोशल मीडिया पर वायरल कर पूरे देश मे नफरत की आग फैलाने का प्रयास किया गया जिससे पूरा देश लम्बे समय तक दो समुदायो के बीच न मिटने वाली गहरी खाई से निकल ही न पाए । हमलावरो द्वारा हमले के समय बनाए गए तमाम ऐसे वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल किए गए जिसमे हमलावरो को ये कहते हुए साफ सुना गया कि पुलिस भी हमारे साथ है इस तरह के वीडियो वायरल करने का उददेश्य ये भी हो सकता है कि देश की जनता के दिलो मे हमारे सुरक्षा बलो के प्रति भी अविश्वास की भावना उत्पन्न हो जाए। सोशल मीडिया की अगर माने तो मैसेज यहा तक वायरल हुए कि दिल्ली के तांडव ग्रस्त इलाको मे जो सुरक्षा बल तैनात किए जा रहे है वो भी असली सुरक्षा बल नही है हालाकि सोशल मीडिया पर अगर देश की जनता पूरी तरह से विश्वास करती होती तो शायद इन तांडवकारियो की साज़िश अब तक सफल हो जाती और दिल्ली के साथ साथ पूरा देश साम्प्रदायिक दंगे की आग मे झुलस रहा होता लेकिन ऐसा इस लिए नही हुआ क्यूकि देश के 95 प्रतिशत लोग आपस मे लड़ना ही नही चाहते है जिसका उदाहरण अगर आप ढूढ़ना चाहे तो वर्ष 1990 से लेकर 2020 का विश्लेषण खुद कर लीजिए । 1990 मे कार सेवको द्वारा अयोध्या मे बाबरी मस्जिद को शहीद करने का प्रयास किया गया था तब मुलायम सरकार मे वहंा गैर कानूनी तरीके से मस्जिद पर हमला करने वालो पर गोली चलाने का आदेश दिया लेकिन उस समय भी पूरे देश मे सिर्फ तनाव के साथ नारेबाज़ी हुई लेकिन कही भी देश की जनता ने आपस मे किसी तरह का कोई टकराव नही किया । 1990 गुज़र गया 1992 मे और फिर 6 दिसम्बर को बाबरी मस्जिद को डायनामाईट के धमाके से ज़मीदोज़ कर दिया गया। कांग्रेस की सरकार मे हुई इस विश्व स्तरीय घटना ने देश के नाम को पूरी दुनिया मे बदनाम किया लेकिन उस समय भी ये हालत नही बने जो हालत ट्रम्प के दौरे के दौरान उत्तर पूर्वी दिल्ली मे बने । साल 2002 मे गुजरात मे गोधरा हुआ और वहंा भी हज़ारो लोगो का नरसंहार किया गया लेकिन गुजरात की आग गुजरात तक ही महदूद रही साम्प्रदायिक दंगे फिर भी पूरे देश मे नही भढ़के क्यूकि देशवासी शायद ये समझ रहे थे कि गुजरात मे जो हुआ वो भी दंगा नही बल्कि हमला ही था जो किसी बड़ी साज़िश का नतीजा था। राजनितिक दल देश की जनता को गुमराह करते रहे लेकिन देश की जनता विकास की आस में मतदान करती रही और राजनितिक दलो के द्वारा की जाने वाले वादा खिलाफी का दंश भी झेलती रही लेकिन देश के सवा सौ करोड़ से भी ज़्यादा लोगो ने आपसी भाई चारे की डोर को टूटने नही दिया। देशवासियो की समझदारी का अन्दाज़ा इसी बात से पूरी दुनिया ने लगा लिया जब 9 नवम्बर 2019 को देश के सर्वोच्य न्यायालय द्वारा बाबरी मस्जिद राम ज्नम भूमि मामले मे फैसला देते हुए मस्जिद की ज़मीन को हिन्दु पक्षकारो को सौंप दिया गया लेकिन देश मे रहने वाले करोड़ो मुसलमानो ने देश की न्यायपालिका पर विश्वास और सम्मान जताते हुए इस फैसलो का स्वीकार कर लिया और पूरे देश मे शानती कायम रही। इन सब घटनाओ के बाद भी जब देश की जनता नही बटी तो न जाने किस साज़िश के तहत दिल्ली को साम्प्रदायिक दंगो की आग मे झोकने की साज़िश रची गई लेकिन यहंा भी ये ताडंव देश की आम जनता के लिए एक बड़ा सवाल बन गया । सवाल ये कि जब किसी भी दंगा पीड़ित ने किसी भी दंगाई के चेहरे को नही पहचाना तो फिर ये किस आधार पर कहा जाए कि दंगाई हिन्दू थे या मुसलमान थे । उत्तर पूर्वी दिल्ली मे लगातार तीन दिनो तक हुए खूनी तांडव के बाद सरकार हरकत मे आई और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ट्वीट कर लोगो से शान्ती की अपील की गृहमंत्री और दिल्ली के मुख्यमंत्री ने भी लोगो से शान्ती की अपील की यहंी नही घटना के तीसरे दिन राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल प्रभावित क्षेत्रो की तंग गलियो मे गए और पीड़ितो से मिल कर उन्होने भी लोगो से शान्ती बनाए रखने की अपील की। लेकिन यहंा हैरत अंगेज़ सवाल ये है कि शान्ती की अपील उन लोगो से की जा रही है जिन्होने खूनी तांडव का दंश झेला अपनो को खोया जिनकी सम्पत्तियां तबाह हुई जिनका तांडव मचाने वालो मे अभी तक कोई नाम नही आया है। ऐसे खूनी तांडव को साम्प्रदायिक दंगा कैसे और किस आधार पर कहा जाए जब किसी भी दंगाई को कोई भी पीड़ित पहचानता ही नही है। उत्तर पूर्वी दिल्ली मे तांडवकारियो ने जिस तरह से राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में ही साम्प्रदायिक दंगे का नाम देकर खूनी तांडव मचाया उससे ये लगता है कि भारी संख्या वाले इन हमलावरो को पहले टेªनिग दी गई हो क्यूकि इनका कोई भी निशाना खाली नही गया जहंा आग लगाई वहंा सब कुछ जल कर राख हो गया जिस दुकान को लूटा गया उसे पुलिस भी बचा नही पाई। मीडिया इसे साम्प्रदायिक दंगा कहे तो कहे लेकिन परिस्थितियां इस खूनी तांडव को खूनी हमला ही बता रही है। अब बारी सबका साथ सबका विकास और सबका विश्वास की बात करने वाले देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के एक्शन लेने की है । मोदी जी इस पूरे प्रकरण की निष्पक्ष जाॅच करा कर देश को बता दीजिए की आप अपने नारे पर अटल है । खूनी तांडव करने वाले हमलावरो की पहचान कर उन्हे ऐसी सज़ा दिलाइए कि भविष्य मे कभी कोई इस तरह के तांडव के बारे मे सपने भी सोंच न सके । आप देश की 135 करोड़ जनता के राजा है आपके लिए सब बराबर है आपकी नजर मे तो कानून सर्वोपरि है ही देश की सरकार पर बदनामी का दांग लगाने वाली इस गम्भीर घटना के दोशियो को सज़ा मिलनी चाहिए ताकि भविष्य मे देश को पूरी दुनियां मे शर्मसार करने वाली ऐसी घटना दोबारा न हो। वैसे मेरे विचार से इस खूनी तांडव वाले हमले को सिर्फ हमला कहना भी वाजिब नही होगा बल्कि ये ऐसा हमला है जिसे आंतकी हमला कहा जाए तो भी शायद गलत नही होगा । दिल्ली को आंतक ख्ूान और तबाही की आग और मौत की चीखो के तांडव की आग मे झोंकने वाले आतंकी जिस मज़हब के भी हो उनके साथ वैसा ही बर्ताव होना चाहिए जैसा आंतकियांे के साथ होता है। क्यूकि जिस समय ये हमला हुआ उस समय देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के साथ आंतक से लड़ने के लिए एक राय से कटीबद्ध थे। ऐसे समय मे दिल्ली मे आंतक फैलाने वाले हमलावर आंतकियो से कम नही माने जाने चाहिए।

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